हे वीतराग आगमज्ञानी, श्री मुनिवर को मेरा प्रणाम।
भावी भगवन हैं आप, गुरु ने नाम दिया सागर प्रमाण।
मुनिराज आपके वंदन से, उर में निर्मलता आती है।
भव-भव के पातक कटते हैं, पुण्यावलि शीश
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